नई कविता
मंजिल क़रीब आते ही थकान हो गई। जब सफर हुआ पूरा तो शाम हो गई।।
मां
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है।
मां बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है।।....मुनव्वर राना
मां बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है।।....मुनव्वर राना
शनिवार, 11 जून 2011
शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010
मेरी नई ग़ज़ल
ग़जल
मंजिल क़रीब आते ही थकान हो गई।
जब सफर हुआ पूरा तो शाम हो गई।।
सोचा नहीं था मैंने तुम यूं मुझे मिलोगी।
लगता है तपती रेत पर बरसात हो गई।।
आज जाके तुमने मुझको पलट के देखा।
लगता है पूरी मन की मुराद हो गई।।
ग़ायब है ग़म मेरा जो साथ रहा वर्षों।
तुम्हारे बिना जिन्दगी आसान हो गई।।
बचपन से सुन रहा था ये देश है हमारा।
आंगन में मगर अब तो दीवार हो गई।।
वो है बहुत अकेला जो था कभी तुम्हारा।
मुझसे मिली तबीयत तो पहचान हो गई।।
मंजिल क़रीब आते ही थकान हो गई।
जब सफर हुआ पूरा तो शाम हो गई।।
सोचा नहीं था मैंने तुम यूं मुझे मिलोगी।
लगता है तपती रेत पर बरसात हो गई।।
आज जाके तुमने मुझको पलट के देखा।
लगता है पूरी मन की मुराद हो गई।।
ग़ायब है ग़म मेरा जो साथ रहा वर्षों।
तुम्हारे बिना जिन्दगी आसान हो गई।।
बचपन से सुन रहा था ये देश है हमारा।
आंगन में मगर अब तो दीवार हो गई।।
वो है बहुत अकेला जो था कभी तुम्हारा।
मुझसे मिली तबीयत तो पहचान हो गई।।
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