मां

इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है।

मां बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है।।....मुनव्वर राना

शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010

मेरी नई ग़ज़ल

ग़जल


मंजिल क़रीब आते ही थकान हो गई।

जब सफर हुआ पूरा तो शाम हो गई।।


सोचा नहीं था मैंने तुम यूं मुझे मिलोगी।

लगता है तपती रेत पर बरसात हो गई।।


आज जाके तुमने मुझको पलट के देखा।

लगता है पूरी मन की मुराद हो गई।।


ग़ायब है ग़म मेरा जो साथ रहा वर्षों।

तुम्हारे बिना जिन्दगी आसान हो गई।।


बचपन से सुन रहा था ये देश है हमारा।

आंगन में मगर अब तो दीवार हो गई।।


वो है बहुत अकेला जो था कभी तुम्हारा।

मुझसे मिली तबीयत तो पहचान हो गई।।